Shri Hari Vishnu Group
Om Namo Narayanay
Chanting of this mantra and physical visit to four established sacred places in four directions of India where presence of Lord Vishnu and Lord Shiva will be sensed, is the only way to divine in this materialistic world.
पुराणों के अनुसार बद्रीनाथ में सतयुग काल में भगवन विष्णु के साक्षात् दर्शन हुआ करते थे !
वैदिक ग्रंथो के अनुसार भगवान् विष्णु ने शिव पार्वती से योग करने के लिये यह स्थान मांग लिया ! वही स्थान आज बद्रीविशाल के नाम से जाना जाता है ! तप करते हुए श्रीहरि के कस्ट देख कर माता लक्ष्मी ने बेर के वृक्ष का रूप धारण किया और धूप, वर्षा, और हिमपात से बचाने के लिए कठोर तप किया ! काफी वर्षो बाद जब श्रीहरि विष्णु जी ने तप पूरा किया तो लक्षमी जी के तप को को देखकर बोले आपने भी मेरे बराबर के तप किया है इसलिए मुझे आपके साथ ही पूजा जायेगा और इस स्थान को (बेर वृक्ष का संस्कृत बद्री) बद्री के नाथ या बद्रीनाथ के नाम से जाना जायेगा !
नर और नारायण पर्वत के बीच और अलखनंदा नदी के किनारे बसा है श्रद्धा का प्रतीक यह धाम !
यहाँ शालिग्राम शिला के रूप में भगवान नरसिंह स्वरुप साक्षात् मूर्ति की बायीं भुजा पतली है औऱ पतली होती जा रही है ! जिस दिन कलाई अलग हो जाएगी उस दिन नर नारायण पर्वत एक हो जायेंगे और बद्रीनाथ का मार्ग बंद हो जायेगा जिसके बाद बद्रीनाथ का दर्शन संभव नहीं होगा !
This place is known for meditation by Lord Vishnu after selecting this place and taking permission by shiva-parvati and seeing his hardship Mata Lakshmi is also present there to years to protect Narayan in the form of berry tree. On attainment of yog sidhi God named this place as Badri (sanskrit for berry) and both laxmi-narayan were woshipped here in this temple.
द्वारकाधीश श्री कृष्णा जहाँ स्वयं विराजमान थे द्वापर युग में ! वे आज भी वहां राजा की तरह हैं ! द्वारका का निर्माण श्रीकृष्ण द्वारा भूमी के उस टुकड़े पर किया गया जो समुद्र से प्राप्त हुआ था ! द्वापर युग में जब दुर्वाशा ऋषि द्वारका आये और श्री कृष्णा और रूक्मिणी के साथ महल में जा रहे थे तब रस्ते में रूक्मिणी जी को प्यास लगी जिसके कारण जमीन में एक पुराना द्वार खोला गया जिससे गंगा नदी की धरा निकली जिसे देख कर दुर्वाशा ऋषि ने रुक्मिणी जी को सदैव वही बने रहने का श्राप दिया ! मुख्य द्वार के पास वहीं आज रुक्मिणी जी का मंदिर है ! प्रतिशोध वस कंश वध के पश्चात उसके ससुर जरासंध ने मथुरा पर 17 बार आक्रमण किया जिससे नुकसान को देखकर कुश स्थली के सौराष्ट्र में अपना राज्य स्थापित किया जिसमे समुद्र से निकले को मिलाकर विस्तार किया ! This temple was built on land brought out from sea which is not a magic but sea science or oceanography. This science is still needed to be decoded. It is expectedly 2500 year back when this temple was built. In 1472 Mahmood Begra tried to stole and demolish this temple In between 15-16 century it was again restructured in Chalukya origin by Raja Jagat Singh Rathore. Temple has two enty gates Moksh Dwar on north and Swarg Dwar on south. In 8th century Adishankaracharya has visited there and sice this is one of the four Dhams of Hindu religion. It is the place situated where Arabian sea and Gomti river meets in Gujarat.